थेंबघुंगरु

थेंबघुंगरु

थेंबघुंगरु घनात वाजे घुमड घनानी
चमकत राही अधुनि मधुनि दाही दिशातुनि

थेंबघुंगरु, अलगद सुटले कृष्णघनातुन
थेंबघुंगरु, बांधित पैंजण सरीसरीतुन

थेंबघुंगरु, चमकत पानी हिरवे होऊन
थेंबघुंगरु, सुंगध होते फुलाफुलातुन

थेंबघुंगरु, थिरकत रानी कधी झर्‍यातुन
थेंबघुंगरु, झळकत राही तृणपात्यातुन

थेंबघुंगरु, स्वैर निनादे कोसळताना
मल्हार घुमतसे, घनगंभीरसा धुंद तराणा

थेंबघुंगरु, तुटून आले सरसर खाली
गुंफून सरींच्या अगणित मिरवित रेशिमशाली

थेंबघुंगरु, सदा झुलतसे मनामनातुन
नाद तयाचा अखंड भुलवी.. कणाकणातुन

थेंबघुंगरु, ओघळती त्या नयनांमधुनी,
सांगून जात ती.. सुखदु:खाची कथा पुराणी
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