नीलकमल

नव नील कुंज हैं झूम रहे कुसुमों की कथा न बंद हुई,
है अतंरिक्ष आमोद भरा हिम-कणिका ही मकरंद हुई।

इस इंदीवर से गंध भरी बुनती जाली मधु की धारा,
मन-मधुकर की अनुरागमयी बन रही मोहिनी-सी कारा।

थोर हिंदी कवी जयशंकर प्रसाद ह्यांच्या कामायनी ह्या कवितेतून.