इस इंदीवर से गंध भरी बुनती जाली मधु की धारा,मन-मधुकर की अनुरागमयी बन रही मोहिनी-सी कारा।
थोर हिंदी कवी जयशंकर प्रसाद ह्यांच्या कामायनी ह्या कवितेतून.