सहमत आहे. व्हीआयपिंसाठी देवदर्शनाची वेगळी रांग ही कल्पनाच हास्यास्पद वाटते.
इथे बाबूजींची बुद्ध और नाचघर ही कविता आठवली.
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इसने बनवाकर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
खुदा को कर दिया है बंद
ये है खुदा की जेल
जिन्हे ये.. (देखो तो इसका व्यंग) .. कहती है श्रद्धा पूजा के स्थान
कहती है उनसे
आप यहीं करे आराम
दिन रात बहोत रहता है काम
मै मिल जाउंगी सुबह शाम
अल्ला पर लगा है ताला
बंदे करे मनमानी रंगरेल
वाह री दुनिया
तून खुदा का बनाया है खूब मजाक, खूब खेल
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हॅम्लेट