अनके गोष्टींची आठवण करून दिल्याबद्दल मनापासून धन्यवाद. 


वाचून ही कविता आठवली :


हमेशा देर कर देता हूं मैं

हमेशा देर कर देता हूं मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई, कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो, उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूं मैं...
मदद करनी हो उसकी, यार की ढारस बंधाना हो
बोहत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूं मैं...
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो, किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूं मैं...
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के यह बताना हो
हमेशा देर कर देता हूं मैं हर काम करने में...

---मुनीर नियाज़ी


मुनीर नियाज़ी ह्यांची ही कविता त्यांच्याच तोंडून इथे बघता, ऐकता येईल. मुनीर नियाज़ी ह्यांची शब्दफेक बरीचशी संजीवकुमारची आठवण करून देणारी आहे नाही?