बालपणीची मैत्रीण म्हणजे, 

एक खुणेची जागा,

गाभुळलेल्या आठवणी विणणारा,

एक नाजुक धागा.

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खऱ्याखुऱ्या मैत्रीला,

कधीच वयाचे बंधन नसते.

जातीपातीच्या सीमा ओलांडून,

दोन मनांचे गुंजन असते.

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सोबतीला कुणी नसेल तर,

मुके मित्रही बोलके होतात.

स्पर्शातून आणि नजरेतून,

व्यथांचे भार हलके होतात.