साहेबजी,
हे एक नितांत सुंदर गीत, रजनी गंधा मधले, मुकेश्ने गाईलेले,
कई बार यूं भी देखा हॅ, 
ये जो मन की सीमारेखा हॅ,
मन सोचने लगता हॅ ...!