अजय गुरुजी येथे हे वाचायला मिळाले:
हरिः ॐ नमस्ते गणपतये॥ त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमासि॥ त्वमेव केवलं कर्तासि॥
त्वमेव केवलं धर्तासि॥ त्वमेव केवलं हर्तासि॥ त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि॥
त्वं साक्षादात्मासि नित्यं ॥ १॥ऋतं वच्मि॥ सत्यं वच्मि॥ २॥अव त्वं माम्॥
अव वक्तारम्॥ अव श्रोतारम्॥ अव दातारम्॥ अव धातारम्॥ अवानूचानमव शिष्यम्॥
अव पश्चात्तात्॥ अव पुरस्तात्॥ अवोत्तरात्तात्॥ अव दक्षिणात्तात्॥ अव चोर्ध्वात्तात्॥
अवाधरात्तात्॥ सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात्॥ ३॥त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः॥
त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममयः॥ त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि॥ त्वं प्रत्यक्षं ...
पुढे वाचा. : ॥श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम्॥