ह्या नामांच्या अनेकवचनांत तीन प्रकार आहेत. कांहींचें अनेकवचन आकारान्त होतें; यांस दादोबा आतेचा गण असें म्हणतात. कांहींचें अनेकवचन ईकारान्त होतें; यांस दादोबा भिंतीचा गण असें म्हणतात. आणि कांहींचें अनेकवचन दोन्ही प्रकारांनीं होतें; यांस दादोबा झेंपेचा गण असें म्हणतात. तेव्हां या तीन गणांत कोणकोणते शब्द येतात तें पाहूं.
प्रकार पहिला ः आतेचा गण( आत-आता ) ः-
(अ)जे अकारान्त स्त्रीलिंगी शब्द मूळ संस्कृत आकारान्त स्त्रीलिंगी शब्दांपासून उत्पन्न झालेले आहेत, त्यांचीं अनेकवचनें याप्रमाणें आकारान्त होतात.
संस्कृत | मराठी | संस्कृत | मराठी |
मूळ शब्द | ए० व० | अ० व० | मूळ शब्द | ए० व० | अ० व० |
अत्तिका | आत | आता | ईु्र्१ा्या | इरा, ईर | इरा |
माला | माळ | माळा | धुर-रा | धूर | धुरा |
भाषा | भाष, भाक | भाषा, भाका | सुरा | सूर (कोंकण) | सुरा |
लिक्षा | लीख | लिखा | दूर्वा | दुरव | दुरवा |
शिरा | शीर | शिरा | नौका | नाव | नावा |
रेखा | रेघ | रेघा | लाला | लाल | लाला |
जटा | जट | जटा | कोकिला | कोकिळ | कोकिळा |
बट | बटा (२९८) | वेला | वेळ | वेळा | |
रंडा | रांड | रांडा | शिला | शीळ | शिळा |
ननांदा (दृ) | नणंद | नणंदा | कक्षा | कांख | कांखा |
समिध-धा | समीध | समिधा | जिह्वा | जीभ | जीभा |
स्नुषा | सून | सुना | धारा | धार | धारा |
शुक्तिका | शिंप | शिंपा | खट्वा | खाट | खाटा |
शतपुष्पा | शेप | शेपा | आम्ला | आंव | आंवा |
गुंफा | गुंफ | गुंफा | अमावास्या | अंवस | अंवसा |
ताम्रिका | तांब | तांबा | इष्टका | ईट, वीट | ईटा, विटा |
माता (तृ) | माय | माया | कणिका | कणीक | कणका |
करका | गार | गारा | गुंजा | गुंज | गुंजा (२९९) |
तारा | तार | तारा | चिंचा | चिंच | चिंचा |
चीरा | चीर | चिरा | लाक्षा | लाख | लाखा |
जंघा | जांघ | जांघा | लालसा | लालूच | लालचा |
झंपा | झांप | झांपा | लज्जा | लाज | लाजा |
तृषा | तहान | तहाना | लत्ता | लात-थ | लाता-था |
तृतीया | तीज | तिजा | सीमा | शींव | शिंवा |
दंष्ट्रा | दि | दाी | शय्या | शेज | शेजा |
निद्रा | नीज | निजा | शर्करा | साखर | साखरा |
पौर्णिमा | पुनव | पुनवा | संध्या | सांज | सांजा |
द्वितीया | बीज | बिजा | शाला | साळ | साळा |
भिक्षा | भीक | भिका | शुंडा | सोंड | सोंडा |
बुभुक्षा | भूक | भुका | इ०. | इ०. | इ०. |
रक्षा | राख | राखा |
इतकी मोठी यादी देण्याचें कारण असें कीं, संस्कृत व्युत्पत्तीचें मराठी भाषेच्या विद्याथ्र्यांस असेलच असा नियम नाहीं. म्हणून संस्कृतानभिज्ञ मराठी विद्याथ्र्यास नुसत्या नियमापेक्षां या यादीचाच अधिक उपयोग होईल. (३००)
टीप -अनेकवचनामध्यें अंत्यास व उपांत्यास कांहीं विकार होतात, हें समीध-समिधा, सून-सुना इ० उदाहरणांवरून वाचकांचे लक्षांत येईलच. यांसंबंधाचे सर्व नियम या अध्यायाचे अखेरीस देण्यांत येतील.
अपवाद ः-हरिद्राऱ्हळद; कामला-कावीळ, कामीण; भल्लुका-भालूक; ह्यांचीं हळदी, कावळी, कामणी, भालुकी अशीं अनेकवचनें होतात.
(अ)जे अकारान्त स्त्रीलिंगी मराठी शब्द मूळचे ऊकारान्त आहेत, त्यांचेंही अनेकवचन आकारांतच होतें.
संस्कृत मूळ शब्द ःपाचूखजूरखजूरविद्युत (प्रा० विज्जू) इ०
मराठी ए० व० ःपाचखाजखरूजवीज इ०
अ० व० ःपाचाखाजाखरजाविजा इ०
(इ)जे अकारान्त स्त्रीलिंगी मराठी शब्द मूळच्या संस्कृत अन्य लिंगी शब्दांपासून निघाले आहेत, ते आतेच्याच गणांत येतात.
संस्कृत | मराठी | संस्कृत | मराठी |
मू० श० | लिंग | ए० व० | अ० व० | मू० श० | लिंग | ए० व० | अ० व० |
शाक | न० | शाक-ख | शाका-खा | शपथ | पु० | शपथ | शपथा |
लवंग | न० | लवंग | लवंगा | मधू | न० | मध | मधा |
काच | पु० | काच, | काचा, | बाष्प | पु० | वाफ | वाफा |
कांच | कांचा | ऊष्मा | पु० | ऊब | उबा | ||
भुज | पु० | भूज | भुजा | लोम | पु० | लव, | लवा, |
शोथ | पु० | सूज | सुजा | लंव | लंवा | ||
वाट | पु० | वाट | वाटा | व्याम | पु० | वांव | वांवा |
प्रभात | न० | पहाट, | पहाटा, | कपिश | पु० | काव | कावा |
पहांट, | पहांटा | कच्छ | पु० | कांस | कांसा | ||
कट | पु० | कड | कडा | सत्काल, | |||
षंड | पु० | सांडा | सांड | सुकाल | पु० | सकाळ | सकाळा |
शाण | पु० | साण, | साणा, | तिलक | पु० | तीट | तिटा |
सहाण | सहाणा (३०१) | क्लेश | पु० | किळस | किळसा | ||
लशून | न० | लसूण | लसणा | टंग | पु० | टांग | टांगा |
वस्तू | न० | वस्त | वस्ता | इ०. | इ०. | इ०. |
(ई)जे अकारान्त स्त्रीलिंगी शब्द धातूंपासून विकार न होतां किंवा कांहीं अल्प विकार होऊन आलेले आहेत ते आतेच्याच गणांत येतात. जसें ः- अटक, चटक, लटक, जाग, टीप, अडक, हाक, पिंक, फुंक, रीघ, खाच, झीज, रीझ, लाट, भोवंड, भीड, चीड, तान, चूक, खीज, झडप, करप, झोंप, धोप, चार, चीर, खडाव, जाणीव, नेणीव, धांव, किळस, चिळस, भोंवळ इ०.
अपवाद ः-उकड, उसळ, उचल, उमळ. ह्या शब्दांचीं अनेकवचनें ईकारान्त होतात; म्हणजे ते दुसऱ्या भिंतीच्या गणांत जातात.
(उ)ह्यांशिवाय जे कांहीं अव्युत्पन्न अकारान्त स्त्रीलिंगी शब्द आहेत, त्यांचेंही अनेकवचन आकारांतच होतें.
टीक | बूज | मजल | ढेंग | टींच | मात | रीप | डांक |
टांग | पैज | गजल | मेंग | बाज | गप्प | खेप | ताजीम |
खारीक | नरद | ड३०२) | वेंग | मोट | चीप | चूळ | चुणूक |
कुळीक | गंजीफ | डांग | शेंग | पेंठ | धाप | लांच | चितंग |
फिरंग | पाव | तोफ | नजर | कमर | रयत | मोहीम | रणंग |
किलच | हाव | शाल | सदर | कंबर | विलायत | जिन्नस | सांपट |
ढेलच | खेंव | ताज | कवर | कुमक | तरफ | हुरूप | फट |
आउज | उणीव | चीज | कसर | मसक | तलफ | हाक | सावट |
खाचट | रेंव | फौज | तसर | शिल्लक | तशरीफ | सूण | शिळट |
रांडमुंड | सडक | ईज | जंजीर | तारीख | गुराव | आण | बांबूट |
मसूर | शिकल | कैद | अक्कल | गरज | तलब | शिळक | आगोठ |
कव | तालीम | फाम | शक्कल | दरज | रकम | डग | कुपट |
माव | बोज | वाम | तक्षीम | ताऊज | सिकल | कणंग | धापट |
कोरट होरट इ० इ० इ० इ० इ०.
प्रकार दुसरा ः भिंतीचा गण( भिंत-भिंती ) ः-
(अ)मूळ इकारान्त अथवा ईकारान्त संस्कृत शब्दांपासून जे अकारान्त स्त्रीलिंगी मराठी शब्द आले आहेत, त्यांचें अनेकवचन ईकारान्त होतें.
संस्कृत | मराठी | संस्कृत | मराठी |
मूळ शब्द | ए० व० | अ० व० | मूळ शब्द | अ० व० | |
भित्ती | भिंत | भिंती (३०३) | कुस्तुंबरी | कोथिंबीर | कोथिंबरी |
पूगफली | पोफळ | पोफळी | खनी | खाण | खाणी |
चालनी | चाळण | चाळणी | चुल्ली(ल्ली) | चूळ | चुळी |
पुष्करिणी | पोखरण | पोखरणी | द्रोणी(क्ड्ढड्ढद्ध) | द्रोण | द्रोणी |
बदरी | बोर | बोरी | धूली(ली) | धूळ | धुळी |
कदली | केळ | केळी | पंक्ती | पंगत | पंगती |
जाती | जात | जाती | पुत्री | पोर | पोरी |
गती | गत | गती | मुष्टी | मूठ | मुठी |
रीती | रीत | रीती | वर्त्ती | वात | वाती |
बुद्धी | बुद्ध | बुद्धी | वेल्ली | वेल | वेली |
तिथी | तीथ | तिथी | सपत्नी | सवत | सवती |
भ्रांती | भ्रांत | भ्रांती | शुंठी(ठी) | सुंठ | सुंठी |
कुक्षी | कूस | कुशी | राशी पु० | रास | राशी |
कुट्टनी | कुंटण | कुंटणी | ग्रिंथ पु० | गांठ | गांठी |
कुठारी | कुऱ्हाड | कुऱ्हाडी | अगि्न पु० | आग | आगी |
कुमारी | कुवार | कुवारी | ड३०४) |
(आ)वनस्पतींचीं अकारान्त स्त्रीलिंगी नामें भिंतीचेच गणांत येतात.
बोर | बाऊट | केळ | नांदेट | नारळ | जास्वंद |
तगर | नांदरूख | भारंग | वावडिंग | भोंकर | महाळुंग |
सुरंग | आवोल | नारिंग | गुलवास | कौठ | शिताफळ |
जांभूळ | रामफळ | डाळबिं | इ० | इ० | इ० |
अपवाद ः-चिंच, गुंज, शाख, दुरव इ०. हे पहिल्या प्रकारांत म्हणजे आतेच्या गणांत येतात.
(इ)ईण-प्रत्ययान्त स्त्रीलिंगी शब्द भिंतीच्याच गणांत येतात. जसें ः- वाघीण -वाघिणी, वाघणी; कोळीण-कोळणिी, कोळणी; सोनारीण-सोनारिण, सोनारणी; इ०.
(ई)आणखी कांहीं अकारान्त स्त्रीलिंगी शब्द, जे मागल्या परिगणनेंत येत नाहींत, ते व विशेषेंकरून तीन अक्षरांहून अधिक अक्षरांचे, हे सर्व भिंतीच्या गणांत येतात.
भेट | भेटी |
ओळख | ओळखी |
पावदूक | पावदुकी |
पावधूक | पावधुकी |
तकरार | तकरारी |
भानगड | भानगडी इ० |
विहीर | विहिरी |
खटपट | खटपटी |
बसकट | बसकटी |
तबलक | तबलकी |
तजवीज | तजविजी |
सासुरवाड | सासुरवाडी इ० |
घोरपड | घोरपडी |
उसनवट | उसनवटी |
तारंबळ | तारंबळी |
सोइरगत | सोइरगती |
खरखटवळ | खरखटवळी |
अदलाबदल | अदलाबदली इ० |
प्रकार तिसरा ः झेंपेचा गण( झेंप - झेंपा, झेंपी ) ः-
(अ)णूक-प्रत्ययान्त सर्व शब्द यांत येतात. जसें ः- करमणूक-करमणुका, करमणुकी; वागणूक-वागणुका, वागणुकी; जाचणूक-जाचणुका, जाचणुकी; इ०.
(आ)आणखी या अकारान्त स्त्रीलिंगी शब्दांचीं अनेकवचनें आकारान्त व ईकारान्त अशीं दोन्ही प्रकारचीं आढळतात, ते येणेंप्रमाणें ः- (३०५)
शाल | परात | टकमक | एरजार | चोंच | खुरनीस | सोयरीक |
ढाल | कटार | तसबीर | अखबार | कोरडीक | वखार | बंदूक |
मशाल | तरवार | वरात | उघडीक | भरताड | खांच | संदूक |
पखाल | सुरवार | वळविंज | आगळीक | खसखस | पुरशीस | खबर |
अहवाल | चकमक | तशरीफ | इजार | हुरमूज | तजवीज | इ० |