जरा नजरोंसे कह दो जी
निशाना चूंक ना जाये
मजा जब है तुम्हारी
हर अदा कातिल ही कहलाए.....

ह्या गाण्यातला माझा आवडता अंतराः-
ये भोलापन तुम्हारा
ये शरारत और ये शौखी
जरूरत क्या तुम्हें तलवार की
तीरोंकी खंजर की
नजर भरके जिसे तुम देखलो वो
खुदही मर जाए...................

                                                       ---------कृष्णकुमार द. जोशी

क़ातिल तुम्हे पुकारूँ के जान-ए-वफ़ा कहूँ
हैरत में पड़ गया हूँ के मैं तुम को क्या कहूँ

हाय, कितनी मासूम लग रही हो तुम
तुमको ज़ालिम कहे वो झूठा है

हम पे क्यों इस क़दर बिगड़ती हो
छेड़ने वाले तुमको और भी हैं

त. क.:-वरील ओळींचे भाषांतर का नाही केलं?