कमर पतली, नजर बिजली, सुराहीदार गर्दन
कयामत से मेरी जान कम नहीं हो
ये जुल्फों की घटा काली, मचलता है जैसे सावन
कयामत से मेरी जाँ कम नहीं हो....

बदन ऐसा है चिकना के फिसलती है निगाहें
तडप जाता है दिल अपना चमकती है जब बाहें
जमीं झूमे, कदम चूमे, जवानी का ये आलम
तुम्ही कह दो के ऐसे में, तुम्हें कैसे न चाहें
करीब आ कर कभी सुन लो, हमारे दिल की धडकन
कयामत से मेरी जाँ कम नहीं हो....

नजर जिस की पडी तुम पर, कलेजा थाम लेगा
इशारा तुम जिसे कर दो, वो कब आराम लेगा
मगर मुझ से तुम्हे मेरे दिलबर कोई शिकवा न होगा
मेरा दिल है जो लूट कर भी तुम्हारा नाम लेगा
न छूटेगा मुझ से कभी वफा का पाक दामन
कयामत से मेरी जाँ कम नहीं हो