ही एक 'ग्रे एरिया' आहे.
ना दाविला जगाला बाजार आसवांनीएकांत मात्र केला बेजार आसवांनी
फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही एक शक्ल की हसरत भी थी
जो हवा में घर बनाये काश कोई देखता
दश्त में रहते थे पर तामीर की आदत भी थी
कह गया मैं सामने उसके जो दिल का मुद्द्आ
कुछ तो मौसम भी अजब था कुछ मेरी हिम्मत भी थी
अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गयी
गो ज़रा से फासले पर घर की हर राहत भी थी
क्या कयामत है 'मुनीर' अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आशना जिन से हमें उल्फत भी थी
- मुनीर नियाझी
चांदनी को रुसूल कहता हूँ
बात को बाउसूल कहता हूँ
जगमगाते हुए सितारों को
तेरे पैरों की धूल कहता हूँ
जो चमन की हयात को डस ले
उस कली को बबूल कहता हूँ
इत्तेफाकन तुम्हारे मिलने को
ज़िंदगी का हुसूल कहता हूँ
आप की साँवली सी सूरत को
ज़ौकेयज़दाँ की भूल कहता हूँ
जब मयस्सर हो साग़र-ओ-मीना
बर्कपारों को फूल कहता हूँ
- सागर सिद्दीकी
जब मेरी हकीकत जा जा कर उन को सुनाई लोगों ने
कुछ सच भी कहा कुछ झूठ कहा कुच बात बनाई लोगों ने
ढायें हैं हमेशा ज़ुल्म-ओ-सितम दुनिया ने मुहब्बतवालों पर
दो दिल को कभी मिलने न दिया दीवार उठाई लोगों ने
आँखों से न आँसू पोंछ सके होठों पे खुशी देखी न गई
आबाद जो देखा घर मेरा तो आग लगाई लोगों ने
तनहाई का साथी मिल न सका रुसवाई में शामिल शहर हुआ
पहले तो मेरा दिल तोड दिया फिर ईद मनाई लोगों ने
इस दौर में जीना मुश्किल है ऐ 'अश्क' कोई आसान नहीं
हर एक कदम पर मरने की अब रस्म चलाई लोगों ने
- इब्राहिम अश्क
फूलों की टहनियों पे नशेमन बनाइये
बिजली गिरे तो जश्न-ए-चरागाँ मनाइये
कलियों के अंग अंग में मीठा सा दर्द है
बीमार निकहतों को ज़रा गुदगुदाइये
कब से सुलग रही है जवानी की गर्म रात
ज़ुल्फ़ें बिखेर कर मेरे पहलू में आइये
बहकी हुई सियाह घटाओं के साथ साथ
जी चाहता है शाम-ए-अबद तक तो जाइये
सुन कर जिसे हवास में ठंडक सी आ बसे
ऐसी कोई उदास कहानी सुनाइये
रस्ते पे हर कदम पे खराबात हैं 'अदम'
ये हाल हो तो किस तरह दामन बचाइये
- अबदुल हमीद अदम