मेरेऽ भाईऽ
जिंदगी कोई लोकल ट्रेन की पटरी नही है जिसपे दिनमे सौ ट्रेने ५-५ मिनीट पे चलती है.
जिंदगी तो ट्रांससैबेरीयन रेल्वे की पटरी है, एक ट्रेन गयी तो दुसरी मिलने मे एक हफ़्ता लगता है! और सफर सिर्फ़ एक-दो घंटोंका नही होता, १५० घंटों का होता है. अपने मकाम अगर सही वक्त जाना है तो सही ट्रेन पकडना बहोत जरूरी है.
फिर भी आपकी मर्जी है, जो आप ठीक सोचिये वो करीये!
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हुश्श, इतके हिंदी एका दमात म्हणजे मज पामरासाठी खूप झाले. हलकेच घ्या.