* ग़ज़ल बहाना करूं और गुनगुनाऊ उसे...हा मिसरा अहमद फ़राजचा आहे.
त्या गझलेतले तीन शेर आवडतात, आठवतात--
करूं ना याद, मगर किस तरह भुलाऊं उसे
ग़ज़ल बहाना करूं और गुनगुनाऊं उसे
वो ख़ार ख़ार१ है शाख़े गुलाब की मानिंद
मैं जख़्म ज़ख़्म हूं फिर भी गले लगाऊं उसे
वो लोग तज़किरा२ करते हैं अपने लोगों के
मैं कैसे बात करूं अब कहां से लाउं उसे
१. काटा काटा. (चोखंदळाला दुसरा काटा भरीचा वाटू शकतो)
२. वर्णन