'सरफरोशी की तमन्ना' ही एक बिहारी कवी बिस्मिल अज़ीमाबादी ह्यांची गझल आहे.
ती रचना अशी -
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
रहरवे-राहे-मुहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा नुवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
यूं खडा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी की दिल में है?
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है!
ऐ शहीदो-मुल्को-मिल्लत तेरे जज़्बोंपर निसार
तेरी क़ुरबानी के चर्चे ग़ैर की मेहफ़िल में है
खेंच कर लायी सब को क़त्ल होने की उमीद
आशिक़ों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
एक से करता नहीं, कोई दूसरा कोई भी बात
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी मेहफ़िल में है
स्वतः रामप्रसाद 'बिस्मिल' उत्तम कवी होते. 'बिस्मिल' त्यांचे टोपणनाव, त्यांचे तख़ल्लुस. अनेकांनी ती त्यांची रचना वाटते.