रंगते ना काव्य शाईने गड्या
दर्दही थोडा झरावा लागतो!



सुरेख. गझल आवडली. यावर एक शेर आठवला.
शेर कहां है खून है दिल का जो लफ़्जों में बिखरा है
दिल के जख्म दिखा कर हम ने महफिल को गरमाया है

हॅम्लेट