गुलाम अलींची प्रसिद्ध गजल 'फासले ऐसे भी होंगे' मधे हीच कल्पना आहे.
वो के खुशबुकी तरह फैला था मेरे चारसूमैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था ॥