मी कुठे पत्ते उघडले अजून | |
मी तर "ब्लाईंड" गेम खेळतोय | |
चाल खेळण्या आधीचा | |
मी तो "माईंड गेम" खेळतोय | |
मी कुठे पत्ते उघडले अजून | |
आजवर फक्त आत्मविश्वास मानले | |
मी तर नोटांच्या बंडला घेऊन आलो | |
अरे.. रे तुम्ही फक्त सुट्टे आणले? | |
मी कुठे पत्ते उघडले अजून | |
तरी माझ्या विरुद्ध सारेचं कसे | |
मी अज्ञान, मुर्ख, वेडा, अढाणी | |
तुम्ही विद्वान असून कोरेचं कसे | |
मी कुठे पत्ते उघडले अजून | |
आणि ते पिसलेही मी कधी होते | |
मग पत्ता टाकताना तुमची नजर | |
आपाआपसात का खाते गोते | |
मी कुठे पत्ते उघडले अजून | |
तीन बादशाह, म्हणून सुखावलात का | |
९९९% तुमचाचं विजय, पण | |
मिळवण्या आधीच लडखडलात का | |
उघडतोय मी पत्ते आता, पण | |
"पॅक" करून तुम्ही डाव सोडता का | |
दोन-तीन-पाच माझ्याकडे पाहून | |
एकमेकांची डोकी फोडता का? | |
सारांश पत्ते असो वा जिवन |
|
विजयी टिळकं त्याच कपाळी लावता | |
तजे पराभवाच्या खोल पोकळीतूनही | |
संधी मिळताच बाजी पलटवतात | |
@सनिल पांगे |