गणपतीची सुखकर्ता दुःखहर्ता.....संपूर्ण आरती

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची। नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥

सर्वांगी सुंदर उटि शेंदूराची। कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥१॥

जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ती। दर्शनमात्रें मनकामना पुरती। जयदेव जयदेव॥ध्रु॥

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा। चंदनाची उटि कुमकुम केशरा॥

हिरेजडित मुकुट शोभे तो बरा। रुणझूणती नूपुरे चरणी घागरिया॥२॥ ध्रु॥

चतुर्भुज गणराज पायीं पाउटे। खाजयाचे लाडू गरगे गोमटे॥

अमृताची वाटी शर्करायुक्त। ऐसा हा गणराज विघ्न निवारीत॥३॥ ध्रु॥

माथीं मंडित मुकुट कानीं कुंडलें। सोंड दोंदावरी शेंदूर चर्चिले॥

नागबंध सोंड दोंद मिरविलें। ऐसें सुंदर रूप मोरया देखिलें॥४॥ ध्रु॥

छत्रें आणि चामरें तुजला मिरविती। उंदीराचे वाहन तुजला गणपति॥

ऐसा तूं महाराज सकळिक हे ध्याति। आनंदे भक्तांसी प्रसन्न होसि॥५॥ ध्रु॥

लंबोदर पीतांबर फणिवरबंधना। तरल सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना॥

दास रामाचा वाट पाहे सदना। संकटीं पावावें निर्वाणीं रक्षावें सुरवरवंदना॥६॥

जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ती। दर्शनमात्रें मनकामना पुरती। जयदेव जयदेव॥