अध्याय | अधिकरण | |
---|---|---|
१ | एक ऐतिह्य-कथन दोन दैन्य-प्रदर्शन | |
२ | तीन कृष्णास शरण चार आत्म-प्रबोधन पांच पाळू स्व-धर्मास सहावा बुद्धि-योग तो सात योगी स्थित-प्रज्ञ थोर आदर्श आमुचा | ॥१॥ |
३ | आठ साधावया बुद्धि कर्म-योग अवश्यक नौ नित्य-कर्म यज्ञार्थ दहावा लोक-संग्रह अकरा शासन हे पाळू बारा वैर्यास संहरू | |
४ | तेरा दिव्यजन्म-कर्म चौदा कर्मी अकर्मता पंधरा प्राज्ञ-मुखे ज्ञान जेथ मोह न संभवे । | |
५ | सोळा सांख्य-योग एक सतरा मुक्त सदा चि जो | ॥२॥ |
६ | अठरा योगारूढ होऊ करू उद्धार आपुला नौदा समाधि-अभ्यास वीस योग्यास शाश्वती | |
७ | एकवीस एक चि ते सूत्र बावीस शरणता बरी तेवीस तोडूनिया मोह ज्ञान-विज्ञान-साधन | |
८ | चोवीस मरणपर्यंत राखू स्मरण संतत पंचवीस भूत-लयोत्पत्ति सव्वीस बोध-क्षयोदय | ॥३॥ |
९ | सत्तावीस ईश्वरी सत्ता अठ्ठावीस हरी-भावना नव्वीस निष्कामता-भक्ति तीस ईश-समर्पण | |
१० | एकतीस विभूति-संक्षेप बत्तीस त्याचा चि विस्तर | |
११ | तेतीस ते ईश्वरी रूप चौतीस तदवलोकन पस्तीस क्षमापन-स्तोत्र छत्तीस रूप-विसर्जन | |
१२ | सदतीस भक्त-तुलना अडतीस सुलभ साधने नौतीस ईश्वर-भक्ताचे गाईले गुण गोड जे | ॥४॥ |
१३ | चाळीस झाडूनिया क्षेत्र केले क्षेत्रज्ञ-शोधन एकेचाळ प्रकृती-त्याग बेचाळ निर्लिप्त-आत्मता | |
१४ | त्रेचाळ त्रिगुण-संसार चव्वेचाळ गुण मुक्त जो | |
१५ | पंचेचाळ छेदिला वृक्ष शेचाळ जीवात्म-दर्शन सत्तेचाळ जीवनी व्याप्त अठ्ठेचाळ पुरूषोत्तम | ॥५॥ |
१६ | नव्वेचाळ संपदा दोन पन्नास असुर-वर्णना एकवन नरक-द्वारे टाळू शास्त्रीय संयमे | |
१७ | बावन विभागिली श्रद्धा स्वाभविक गुणी त्रिधा त्रेपन आहार-यज्ञादि चौपन ॐ-तत्-सदर्पण | ॥६॥ |
१८ | पंचावन त्याग-मीमांसा छप्पनी कर्म-निर्णय सत्तावन त्रिविधा वृत्ति अठ्ठावन पूर्ण साधना नव्वावन अर्जुना बोध साठी ग्रंथ समापिला | ॥७॥ |