मेघही होई पिसा

हे पाहुनी मन झुलले। देई प्रेमही आळोखे
अन मेघही होई पिसा। श्रावणघन दाटे नभी
हे पाहुनी मन झुलले। देई प्रेमही आळोखे
अन मेघही होई पिसा॥ध्रु॥

नव्हते कधीही ममभाग्य असे।
प्रेमी तुजसम मज कोणी मिळे।
मन हर्षने झालंय वेडे।
गे प्राणप्रिये तव भेट घडे। गे प्राणप्रिये तव भेट घडे।
का व्हावे न मन वेडे। नखरे तव काय सखे...
हे पाहुनी मन झुलले। देई प्रेमही आळोखे
अन् मेघही होई पिसा॥१॥

नजरेस नजर भिडता सखया।
मन भावविव्हल होई माझे।
गवतासम मी लागे वाहू।
हा प्रवाह न मी थोपवू शकले। हा प्रवाह न मी थोपवू शकले।
जीवनी खळबळ माजे। वाजे सनईही सुखे...
हे पाहुनी मन झुलले। देई प्रेमही आळोखे
अन् मेघही होई पिसा॥२॥

आहेत मनाच्या उद्यानी।
अजी नवआकांक्षांची सुमने।
होता शिशिरच जणू आजवरी।
अन् जीवन नीरस एकसुरी। अन् जीवन नीरस एकसुरी।
येताच पदर ग तुझा। हाती, मन हे हरखे..
हे पाहुनी मन झुलले। देई प्रेमही आळोखे
अन् मेघही होई पिसा॥३॥

हे कुठल्या हिंदी गाण्याचे भाषांतर आहे ते ओळखा.

(ध्रुवपदाचे भाषांतर नंतर उघड होईल : प्रशासक)