|| अनुभव || (दुवा क्र. १) ही माझी एक जुनी रचना.
कळे काय कोणा | शब्देचि तो अश्व | ऊंचाउनि पुच्छ | धावता पाहे ||
सुगंध सुगंध | वदोनि का कळे | तत्काळचि वोळे | गंधिता चाफा ||
गोडी ते न कळे | उच्चारे साखर | शब्द तो उधार | अनुभवचि साच ||
या रचनेऐवजी ही खालील रचना जास्त योग्य वाटते का मूळ रचनाच चांगली - जाणकार रसिकांनीच कृपया सांगावे ही विनंती.
शब्द तो बोलका | अर्थालागी मुका | काय वेग निका | सांगू पाहे ||
पाहे नेत्री कोणी | अश्व दौडे रणी | कळे त्याचि क्षणी | वेग त्यासी ||
मृदू का कठिणी | स्पर्शिताचि जाणी | शिणवावी वाणी | वृथाची का ||
शब्द परिमळे | उच्चारे का कळे | घ्राणासीची वोळे | गंध जैसा ||
शब्दे मधुरता | न ये की वर्णिता | जिव्हेने चाखता | कळो येई ||
शब्द तो उधार | दावी ना साचार | अनुभव सार | रोकडाचि ||