पाहुणा

         पाहुणा

आहे उरात अजुनी
कप्पा एक सुना सुना
आहे कशाची अजुनी
प्रतीक्षा मज कळेना

जन्मलो इथेच अन
इथेच मी झालो जुना
जुन्याच या वाटेवरी
अजूनही मी पाहुणा

बदलतो रोज इथे
जगण्याचाच बहाणा
नव्याच या मैफिलीत
माझा पोरका तराणा

होतो कुठे, आलो कुठे
मज आता आठवेना
मातीत या पाहतो मी
पुन्हा माझ्याच मुळांना

                                      -उद्धव कराड, (मो. नं. ९८५०६८३०४५)
                                        मु. जळगाव, ता. निफाड, जि. नाशिक.