तिचे अभंग, तिची गाथा

सकाळी उठावे | सुसाट सुटावे |
ऑफिस गाठावे | कैसेतरी ||

इच्छा गं छाटाव्या | पोळ्या अन् लाटाव्या |
वेळाही गाठाव्या | सगळ्यांच्या ||

चढावे बशीत | गर्दीत घुशीत |
रोज या मुशीत | कुटताना ||

धक्के ते मुद्दाम | नजरा उद्दाम |
गाठण्या मुक्काम | सोस बये! ||

उशीर अटल | चुकता लोकल |
जीवही विकल | संभ्रमित ||

लागते टोचणी | भिजते पापणी |
जावे का याक्षणी | तान्ह्याकडे? ||

मस्टर धोक्यात | छकुला डोक्यात |
आयुष्य ठेक्यात | बसेचिना ||

रोजची टुकार | कामे ती भिकार |
बंड तू पुकार | बुद्धी म्हणे ||

एक तो 'वीकांत' | एरव्ही आकांत |
समय निवांत | मिळेचिना ||

तेव्हाही आराम | असतो हराम |
कामे ती तमाम | उरकावी ||

लावून झापड | शिवावे कापड |
तळावे पापड | निगुतीने ||

कामसू सचिव | सखीही रेखीव |
गृहिणी आजीव | प्रियशिष्या ||

काया रे शिणते | मनही कण्हते |
कुणी का गणते | श्रम माझे? ||

नित्याची कहाणी | मनात विराणी |
जनांत गार्‍हाणीं | सांगो नये ||

पेचात पडतो | प्रश्नांत बुडतो |
जीव हा कुढतो | वारंवार ||

"अशी का विरक्त? | व्हावे मी उन्मुक्त |
जीव ज्या आसक्त | ते शोधावे ||

प्रपंच सगळा | सोडूनि वेगळा |
एखादा आगळा | ध्यास घेई ||

तारा मी छेडाव्या | निराशा खुडाव्या |
काळज्या उडाव्या | दिगंतरी ||"

अंगाला टेकत | लेकरु भेकत |
आणते खेचत | भुईवर ||

उशीर जाहला | जीव हा गुंतला |
प्रपंची वेढला | चहूबाजूं ||

कल्पना सारुन | मनाला मारून |
वास्तव दारुण | स्वीकारते ||

बंधने झेलावी | चाकोरी पेलावी |
वाट ती चालावी| 'रुळ'लेली ||

विसर विचार | रोजचे आचार |
होऊनि लाचार | उरकावे ||

काही न मागणे | केवळ भोगणे |
रोजचे जगणे | विनाशल्य ||

हा जन्म बिकट | गेलासे फुकट |
हाकण्या शकट | संसाराचा ||

तरीही अखंड | आशा ही अभंग |
मनी अनिर्बंध | तेवतसे ||

ठेवा तो सुखाचा | निर्व्याज स्मिताचा |
विसर जगाचा | पाडी झणीं ||

जातील दिवस | निराश निरस |
झडेल विरस | आयुष्याचा ||

खरी की आभासी | आशा ही जिवासी |
दिलासा अविनाशी | देई खरा ||

पुनश्च हासून | पदर खोचून |
देई ती झोकून | हुरुपाने ||

[हीच कविता येथेही वाचता येईल. 'वीकांत' = वीक-एंड. हा शब्द एका मराठी अनुदिनीवर वाचला. त्यावरूनच ही कविता सुचली.]