माउली...

प्रेरणास्रोत : गगनगिरी यांची सावली...

मी स्वतः:च्या माउलीला घाबरतो

जेव्हा मी नापास ठरतो...

    माउली किरकोळ शरीराची

    पण तिंबते कणीक माझ्या पाठीची...

माउलीस नाही अश्रू, माउलीस नाही दु:ख

शरीर बुकलते सारे आणि घेते वर तोंडसुख...

    माउली ओरडते गुणपत्रिकेचे रकाने बघून

    भोपळे बघून तिच्यावर मग आग येते माउलीतून...

येतो निरोप शिक्षिकेचा, निजे 'खोडसाळ' वर्गात मजेत

तरी स्वप्न पाहते उगाच डिस्टिंक्शन मिळण्याचे साखरझोपेत...

                                                                        
                                                                        खोडसाळ...