बैल तोहे

उत्पलांच्या कवितेतील बैलाच्या ऊल्लेखाने सहज आठवले म्हणून देत आहे.
माऊलींची क्षमा मागून.
कोणाच्याही भावना दुखावणे हा हेतू नाही. एक निखळ आस्वाद.
तरीही कोणाला आवडले नसेल तर मला माफ करून हे लिखाण रद्द करावे ही विनंती.
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बैल तोहे मारू पाहताहे
पळून जा बाहेर सांगताहे

दुडदुडू रे धाऊ
तुझे वेगाने चालव पाऊ
पळू रे सत्त्वरी , ते फुत्कारत येती
                                 बैल तोहे

कडब्याची रे ऊंडी, खाल्ली तरी तो भांडी
जीवाशी बेतले, झाली मंद रे बुद्धी
                                 बैल तोहे

शिंगे उकरे माती, चित्कारी तो कंठी
फेके दावे गोठी, गळीचे लोढणे तोडी
                                  बैल तोहे

थांबे ना मवाली, उगवे बिंदू कपाळी
आधी वेसण घाली, थकून सांगे
                                 बैल तोहे