हमाली

विझल्या  कालांतराने  पोरक्या  मशाली

कालचा  कार्यकर्ता  पुन्हा  बने  मवाली


विरल्या  हवेत फ़सव्या  घोषणा  कधीच्या

पुनश्च  लोक आता  ईश्वराच्या  हवाली


ल्यालें  राजवस्त्रें ते गावगुंड  सारे

जनता- जनार्दनाला  ही  लक्तरें  मिळाली


उजवें  अथवा  डावें , भगवें  वा  निधर्मी

कोणी  पुसें  न  आता  दीनांची  खुशाली


आपल्या  दु:खाचा  वाहतो  भार जो तो

चुकली  कुणास  येथे  ही रोजची  हमाली