मुक्तक (१)

मुक्तक हा काव्य प्रकार प्रथमच आजमावत आहे. चू.भू.दे.घे.

श्रीगणेशा मुक्तकांचा आज केला यार हो
खटखटाया मी निवडले आज नवखे दार हो
सुप्त होते विसरलेले स्वप्न लिहिण्याचे नवे
दाद रसिकांची जरूरी व्हावया साकार हो
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वाचले मी द्रौपदीला कौरवांनी त्रासले
वस्त्रहरणाच्या व्यथेने सर्व जग हेलावले
चूक होती पांडवांची शंभरांना दोष का?
सर्व हरता का तयांनी तिज पणाला लावले?
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देत जा जखमा मला तू वेदनांचेही झरे
भळभळू दे अन पडू दे लाख ह्रदयाला चरे
झेलता तव घाव ताजे विसरतो मी त्या जुन्या
वेदनांना अन मनाला वाटते थोडे बरे
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"प्रेम आहे" सांगण्याला वेळ केला केवढा ?
श्वास सरले थांबण्याला वेळ नव्हता तेवढा
दीप तू कबरीवरी मी लावलेला पाहिला
होऊनी सबजा(#) उगवलो मोद झाला एवढा
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(#) तुळसीच्या जातीतले एक रोपटे जे कबरीजवळ लावले जाते.

निशिकांत देशपांडे मो.नं. ९८९०७ ९९०२३
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