दत्तकृपायोग (अभंग) - भाग १

[एक अध:पतित, दुर्दैवी, नैराश्यग्रस्त आणि आत्मघाताकडे निघालेल्या युवकाला पूर्वसुकृतानुसार योग आल्यावर सद्गुरू भेटतात. दत्तकृपायोगाने त्याच्या वृत्तीमध्ये आणि आयुष्यात स्थित्यंतरे येतात.  एक  कहाणी  अभंग स्वरूपात मांडण्याचा प्रयत्न (क्रमश:) ]

आरंभी वंदितो| ओमकार स्वरूपा|
गणांच्या नायका| गणाधीशा||

वैखरीचे बळ| प्रेरणा तुझीच|
तुझी लीलामात्र| शब्दसृष्टी||

वासनांच्या संगे| जीव जन्मा आला|
सुरू झाला खेळ| प्रारब्धाचा||

रम्य बालपण| तयास लाभले|
अनायास गेले| निसटून|

विषयांचे व्याळ| डसले विषारी|
नासले तारुण्य| दुर्दैवाने||

बळावला काम| नुरला विवेक|
झाले त्याचे मन| संभ्रमित||

रूग्ण होता मन| ओजहीन देह|   
आले व्यवहारी| अपयश||

दुर्दैवाचा फेरा| ऐसा सुरू होता|
ग्रासितो विकार| नैराश्याचा||

गणगोत सारे| वैर्यासम भासे|
पदोपदी होता| अपमान|

शोधिता आधार| सापडेना कोठे|
करावा त्यापरी| आत्मघात|

मृत्यू भयास्तव| तेही करवेना|
ऐसी ती अवस्था| दीनवाणी||

परी त्याची माता| साध्वी पुण्यशील|
असे सदा रत| गीताभ्यासी||

पोटच्या गोळ्याचा| ऐसा अध:पात|
माउलीस काही| साहवेना||

परी जो उपाय| योजण्यास जावा|
ठरे तो अपाय| ऐसी गती||

कलियुगी श्रेष्ठ| दत्त अवतार|
छेलीखेडी ग्रामी| प्रकटला||

निवास तयांचा| अक्कलकोट ग्रामी|
वटवृक्ष तळी| निरंतर||

स्वामी समर्थांची| कृपा प्राप्त होता|
अशक्य ते शक्य| ऐसी ख्याती||

वाटला आधार| स्वामीचरणांचा|
गेली ती शरण| मनोभावे||