मी निघालो...

खाजगी दु:खास दैवी मानणारा वेगळा
राहुनी माणूस अश्रू वाहणारा वेगळा


                  पेटल्या वस्तीत चर्चा  ही अशी नाही बरी
                  तो निखारा वेगळा अन् हा निखारा वेगळा


ते भिकारी थोर त्यांच्या धर्मशाळा वेगळ्या
चालतो कंगाल सत्त्याचा गुजारा वेगळा


                   सोसण्या आयुष्य थोडें सोसुनी घ्यावें हंसू
                   त्या विषासाठीं विषाचा हा उतारा वेगळा


नेहमींच्या यातनांची कैद ही नाहीं खरी
मात्र मेलेल्या मनाचा कोंडमारा वेगळा


                   हा न टाहो दु:खिताचा, हा सुखाचा ओरडा
                   होत आहे दूर बंडाचा पुकारा वेगळा


जागलो तेंव्हा न होता माझियापाशी दिवा
मी निघालो अन् उदेला एक तारा वेगळा