शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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सुवर्ण शृंगार | कविता | मंजुश्री गोखले | ६ | |
निळा(विडंबन) | कविता | केशवसुमार | १ | |
सांबार (कोकणी पद्धतीत) | पाककृती | लम्बोदर | १ | |
काय वाट्टेल ते होईल! | गद्य साहित्य | अनु | १३ | |
गझल | कविता | मिलिंद फणसे | ८ | |
(मुलाहिजा) | कविता | केशवसुमार | २ | |
तुझ्या शपथ हे खरे! | कविता | टवाळ | १३ | |
चूक | कविता | केशवसुमार | ||
सावळा घन | कविता | वेदा | ५ | |
पाण्यातिल लख-लख.. | कविता | हेमंत राजाराम | ४ | |
व्यसन | कविता | कामिनी केंभावी | २ | |
मुलाहिजा - २ | कविता | खोडसाळ | १ | |
रात्री जे घडले त्याची दिवसाला वार्ता नसते | कविता | प्रणव सदाशिव काळे | ८ | |
मृगजळ-२ | कविता | केशवसुमार | १ | |
किनारा-२ | कविता | केशवसुमार |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |