शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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केळी आणि हत्ती | गद्य साहित्य | मोरू | २५ | |
स्मृतींचे जुने सूर | कविता | कुमार जावडेकर | १३ | |
चारोळी.. | कविता | जयेन्द्र | ||
कोणी गेलं म्हणुन.. | कविता | जयेन्द्र | ३ | |
भास | कविता | शीला७१२ | ५ | |
तु आलीस तेव्हा.. | कविता | जयेन्द्र | ||
गुलखंड | पाककृती | स्वाती दिनेश | ५ | |
महानगरपालिकेमध्ये एक अवघड दिवस!! | गद्य साहित्य | समीर सुर्यकान्त | २३ | |
हूरहूर | कविता | मी कविता | ||
देवाच्या राज्यातील गमती | गद्य साहित्य | मीरा फाटक | २९ | |
'गांधीगिरी' | चर्चेचा प्रस्ताव | सुखदा | २० | |
उमजले ज्यास हे.... | कविता | सुमति वानखेडे | २ | |
नजर... | कविता | vinay | ||
हृदय पाखरु | कविता | जयश्री अंबासकर | ३ | |
चारोळीकऱ-क्र.१४ | कविता | vinay | २ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |