शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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वाटते | कविता | जयेन्द्र | १ | |
सोस | कविता | संपदा१ | २० | |
मी आणि माझे सहमनोगती | चर्चेचा प्रस्ताव | प्रशासक | ९२ | |
कोळाचे भरीत | पाककृती | गावरान गंगी | ५ | |
सफरचंदाची मिठाई: ऍपल पाय | पाककृती | स्वाती दिनेश | ३ | |
माणसं.. | कविता | SPEJ | १ | |
नाही सुचल शिर्षक | कविता | कामिनी केंभावी | ३ | |
चारोळीकर क्र.२ | कविता | vinay | ||
चारोळीकऱ-क्र.१ | कविता | vinay | २ | |
हृदयविकार-२५ व्यसनमुक्ती | गद्य साहित्य | नरेंद्र गोळे | ९ | |
वारसदार कोण? | गद्य साहित्य | भाष | १ | |
कृपया मदत हवी. | चर्चेचा प्रस्ताव | खेडुत नं. १ | ७ | |
भेट | कविता | शीला७१२ | ६ | |
आळशी वि. उद्योगी | चर्चेचा प्रस्ताव | राजेश दात्ये | ७ | |
थांग | कविता | निनावी | ९ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |