शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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उदो ग अंबे उदो .. | गद्य साहित्य | पल्लवीसमीर | १४ | |
चांदणे | कविता | मनीषा२४ | ४ | |
काय करावे - या प्रेमामध्ये?(२) | गद्य साहित्य | चेतन१२३प | १३ | |
ही तीच.. | कविता | कौतुक शिरोडकर | २ | |
नातं | गद्य साहित्य | कौतुक शिरोडकर | ४ | |
उप वास | गद्य साहित्य | सृष्टिलावण्या | १६ | |
पालक पुरी | पाककृती | मनाली भावसार | ५ | |
शेवयांची खीर | पाककृती | मनाली भावसार | ५ | |
... काय बाकी? | कविता | प्रदीप कुलकर्णी | १८ | |
वाटले होते | कविता | चौकस | ५ | |
स्वप्नसुंदरी | कविता | आनिरुद्ध११ | ३ | |
खेळ | कविता | अजय जोशी | ४ | |
काय करावे- या प्रेमामध्ये? | गद्य साहित्य | चेतन१२३प | ३ | |
आम्ही लेकाचे | कविता | जयन्ता५२ | ५ | |
माझे हैदराबादमधील प्रशिक्षण-१२ | गद्य साहित्य | मृचंपा | ३ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |