शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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गाफिल | कविता | मिलिंद फणसे | १७ | |
गुन्हा | कविता | प्रशांत | ६ | |
पूरिया-धनाश्री (जालनिशी) | गद्य साहित्य | अदिती | १० | |
हे शब्द असे लिहा (इ - उ) | गद्य साहित्य | महेश | १ | |
बीबियाणे | कविता | महेश | २० | |
प्रतिसाद ! | कविता | अभिजित पापळकर | २४ | |
एकदा एक कवी... | कविता | एक वात्रट | १६ | |
मनोगतावरील काही शब्दांचे (खरे) अर्थ ! | गद्य साहित्य | एक वात्रट | २६ | |
पदरव | गद्य साहित्य | बकुळ | ११ | |
किरणमयी | कविता | शीला७१२ | ९ | |
प्रिय मित्रा | गद्य साहित्य | बैरागी | १३ | |
ये पुन्हा.... | कविता | सुमति वानखेडे | ४ | |
नाव कुणाचे ओठांत? | कविता | देखणी | ५ | |
सुख | कविता | जयश्री अंबासकर | ६ | |
ट्रक/लॉरी आणि टेंपो... | चर्चेचा प्रस्ताव | आशय | ४ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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लेखात काही ढोबळ चुका आहेत, | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |