शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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आई विरुद्ध बाप | कविता | कमलेश पाटील | १ | |
शाश्वत - ४ | गद्य साहित्य | नगरीनिरंजन | १२ | |
अनंगरंग | कविता | मनीषा२४ | १० | |
सोडू नको | कविता | मिल्या | १३ | |
प्रश्न | कविता | मोगरा फ़ुलला | १ | |
'यूपीएससी'त महाराष्ट्राचे सुयश | चर्चेचा प्रस्ताव | संग्राहक | ५ | |
ती संपली कहाणी | कविता | जयन्ता५२ | ८ | |
(रेडा...) | कविता | केशवसुमार | २ | |
सामान्य ! | कविता | चैतन्य दीक्षित | ९ | |
शेवंतिका 'बनवणे' | गद्य साहित्य | हेमंत मुळे | ८ | |
रेडा... | कविता | भूषण कटककर | ५ | |
’अंगाई ते गझल-रुबाई- समग्र वा. न. सरदेसाई’ | गद्य साहित्य | मानस६ | २ | |
मेरीची डायरी | गद्य साहित्य | मुखदूर्बळ | ७ | |
पेच | कविता | विट्ठ्ल वाघ | २ | |
उणीव | कविता | विट्ठ्ल वाघ | २ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |