शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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हृदयी प्रीत जागते जाणता, अजाणता | कविता | मिलिंद दिवेकर | १ | |
येणार नाथ आता, येणार नाथ आता | कविता | मिलिंद दिवेकर | २ | |
चिऊताई चिऊताई | गद्य साहित्य | सर्वसाक्षी | २७ | |
झब्बू - १ | कविता | नीलहंस | ३ | |
विलोम काव्य | चर्चेचा प्रस्ताव | जीवन जिज्ञासा | ४ | |
माणूस नावाचा बेटा-६ | गद्य साहित्य | सन्जोप राव | ४ | |
तू निघताना.. | कविता | सुप्रियापाटील | ५ | |
जगी ज्यास कोणी नाही | कविता | वेदश्री | २ | |
गोकुळीचा चोर | कविता | वेदश्री | ||
दत्त दिगंबर दैवत माझे | कविता | वेदश्री | १ | |
पत्ते खेळूया? | चर्चेचा प्रस्ताव | भास्कर | १४ | |
अबोलीचे बोल | कविता | रजेश्नगरे | ३ | |
मोसम | कविता | शीला७१२ | ३ | |
अज्ञान | कविता | सन्जोप राव | २ | |
पाठमोरी | कविता | नारदीय | ४ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |