शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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अदभुत रम्य कथेचे दालन. | गद्य साहित्य | द्वारकानाथ कलंत्री | ३ | |
मराठीकरण आणि संगणक | गद्य साहित्य | प्रशासक | ५ | |
काही मनातले... | गद्य साहित्य | द्वारकानाथ कलंत्री | २१ | |
मराठीकरण असे असावे. | चर्चेचा प्रस्ताव | प्रशासक | ३४ | |
येथे कुणी यावे? कसे यावे? | गद्य साहित्य | प्रशासक | २० | |
मला येथे लिहिता येईल का? | Basic page | प्रशासक | १० | |
इथल्या लेखांचे वर्गीकरण | Basic page | प्रशासक | ५ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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आकालनात गफलत आहे | संजय क्षीरसागर | विपश्यना, ध्यानातून ज्ञानाकडे जाण्याचा मार्ग | |
सनातन / कालातीत | सोकाजीत्रिलोकेकर | विपश्यना, ध्यानातून ज्ञानाकडे जाण्याचा मार्ग | |
अर्थात, बुद्धाबद्दल मला कमालीचा आदर आहे ! | संजय क्षीरसागर | विपश्यना, ध्यानातून ज्ञानाकडे जाण्याचा मार्ग | |
वा ! छान ! | कुशाग्र | अमर दीप देव आनंद | |
सद्यकालीन मानवी चित्तदशेला | संजय क्षीरसागर | विपश्यना, ध्यानातून ज्ञानाकडे जाण्याचा मार्ग | |
चुपके चुपके | कुमार सतीश | 'चुपके चुपके रात-दिन'चा भावानुवाद.... असाही. | |
अहंकार | कुमार सतीश | अहंकार आणि नम्रता | |
हिंदू हॉटेल म्हणजे हिंदू मालकाचे हॉटेल | अद्वैतुल्लाखान | हिंदू हॉटेल | |
हिंदू हॉटेल म्हणजे हिंदू चहाचे दुकान | शुद्ध मराठी | हिंदू हॉटेल | |
आता हा नवा घोळ ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |