शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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तुमचे अस्तित्व | कविता | मन्दा जोशी | १ | |
सर्वोच्च झेप | गद्य साहित्य | रन्गा | ११ | |
खबरदारी - | कविता | विदेश | ||
वसाहत ते महाबलाढ्य राष्ट्र - ३ | गद्य साहित्य | रन्गा | १ | |
ओलावा ... | कविता | अनुबंध | ५ | |
दरवाढ | चर्चेचा प्रस्ताव | मकरध्वज | ७ | |
डॉन | गद्य साहित्य | मन्दार कात्रे | ३ | |
..भ्रांत नाही | कविता | रत्नाकर अनिल | ||
डोळ्यांची भाषा आता | कविता | दीपकशांपवार | ||
घालमेल | कविता | राजेंद्र देवी | ||
कावला | कविता | रत्नाकर अनिल | ||
घो टा ळा | गद्य साहित्य | विदेश | ||
सोपे वाटेल असे शब्दकोडे ७ | गद्य साहित्य | महेश | २२ | |
म्हातारा | कविता | रसप | ४ | |
जुना पुराणा पिंपळ ... | कविता | मनीषा२४ | १ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |