शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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जगण्यासाठी (दोन कफियाची गजल) | कविता | निशिकान्त दे | ४ | |
मन संगणक | कविता | राधामोहन | २ | |
निघा आता | कविता | जयन्ता५२ | ४ | |
आला पहा कवी तो - | कविता | विदेश | २ | |
आयुर्विद्या - १ | गद्य साहित्य | आषाढ | २ | |
एक जमाना झाला | कविता | निशिकान्त दे | ८ | |
साथ | कविता | गंगाधरसुत | ३ | |
गोष्ट जुनीच .... माणसं नवीन (सातवा भाग) | गद्य साहित्य | गंगाधरसुत | ५ | |
महान एकदा तरी | कविता | निशिकान्त दे | ||
चष्मा असुनी दिसले नाही - | कविता | विदेश | २ | |
महादेवाची नावे | चर्चेचा प्रस्ताव | प्राजक्ता२ | १७ | |
अंगूर मलाई | पाककृती | सोनल२२ | २ | |
पंख ..!! | कविता | प्रकाश१११ | ||
एखादी कविता वाचली कि... | कविता | ओंकार बेलगमवार | ||
कविता लिहायचे दिवस | कविता | अदिती | २ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |