शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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देणे | कविता | अलोक जोशी | २ | |
फॅमिली (१) | गद्य साहित्य | अरुण वडुलेकर | १ | |
सोनपरी.. | कविता | श्वास स्वातीचा | २ | |
ह्या कुंतलांच्या रेशमी तिमिरास ना भ्यावेस तू | कविता | टवाळ | २६ | |
दशकांनंतर | कविता | भूषण कटककर | ११ | |
आनंद दायी ? | कविता | अलोक जोशी | ||
माझं मन | कविता | प्रसन्न मेघा | ||
अवघे पाऊणशे वयोमान | गद्य साहित्य | मृदुला | ११ | |
तुझा स्पर्श | कविता | सोनलि_रजदे | २ | |
अशीही एक वटपौर्णिमा. | गद्य साहित्य | भानस | २ | |
फिनिक्स | कविता | सनिल पांगे | १ | |
एक मी अन एक तू ! | कविता | चैतन्य दीक्षित | १९ | |
ओळखीचे भेळवाले | गद्य साहित्य | सई मुंडले | २८ | |
अस्तित्व कल्पनांचे | कविता | मिलिंद फणसे | १२ | |
बातमीपत्र | कविता | भूषण कटककर | १ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |