शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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बसचा प्रवास | कविता | पुश्कराज | ५ | |
दिवस सरले | कविता | कस्सप | २ | |
स्वप्नील - भाग २ | गद्य साहित्य | ग्रेग | ६ | |
प्रश्न | कविता | चौकस | ४ | |
स्मृतिगंध-१० "घर पाहावं बांधून.. " | गद्य साहित्य | वामनसुत | १ | |
ओढ | कविता | यशवंत जोशी | ४ | |
कविता१ | कविता | मांझी | ३ | |
स्वप्नील - भाग १ | गद्य साहित्य | ग्रेग | ४ | |
नियतकालिकांच्या निवडक अंकांचा संच | गद्य साहित्य | मऊमाऊ | ५ | |
अशक्य केवळ | कविता | जयश्री अंबासकर | १२ | |
कैक मतले... | कविता | मानस६ | ८ | |
प्रवास... | गद्य साहित्य | भानस | ३ | |
तळघर | कविता | बकुळ | ५ | |
पोटमाळा | कविता | जयन्ता५२ | ११ | |
कुमठा नाका १ | गद्य साहित्य | कुशाग्र | ३ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |