शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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वर्म -३ | कविता | केशवसुमार | २ | |
ज्येष्ठ नागरिक जीवनसाथी | कविता | टवाळ | ११ | |
(उडवेलही पिसारा) | कविता | कारकून | ५ | |
वर्म - २ | कविता | खोडसाळ | ८ | |
जुळवून ठेव तारा | कविता | कुमार जावडेकर | १४ | |
शब्द साधना - १५. | चर्चेचा प्रस्ताव | द्वारकानाथ कलंत्री | १० | |
ट ला ट री ला री | गद्य साहित्य | कुशाग्र | २ | |
देवा-२ | कविता | केशवसुमार | ४ | |
(देवा) | कविता | कारकून | ८ | |
वर्म | कविता | पुलस्ति | ४ | |
तिला का लागली उचकी नका मागू खुलासा | कविता | माफीचा साक्षीदार | ७ | |
मृत्युंजय अमावस्या | कार्यक्रम | मी गणेश | २ | |
देवा | कविता | चित्त | १५ | |
याला काय म्हणावे? | गद्य साहित्य | आनंदघन | १९ | |
माणिकगड | गद्य साहित्य | जीएस | ६ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |