शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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ढेकणापरी मज, माझ्यावर चिडणारे | कविता | कारकून | २ | |
एका प्रोग्रामरची 'अनु'दिनी: हेटाळा वटाळा घोटाळा | गद्य साहित्य | अनु | २४ | |
उपवासाचे कबाब | पाककृती | माधव कुळकर्णी | ९ | |
तेजस्विनी | गद्य साहित्य | माधव कुळकर्णी | २१ | |
कोलांट्या घेतात मदारी! | कविता | चित्त | १९ | |
ती जाताना 'येते' म्हणून गेली | कविता | प्रसाद | १४ | |
पाहुनीया घेतलेला दांडका | कविता | कारकून | १३ | |
ब्रेड रोल कटलेट | पाककृती | प्राजु | २ | |
मुहुर्त | कविता | चिन्नु | ३ | |
वाचताना | कविता | वरदा | ९ | |
एक ढग रडत होता | कविता | सनिल पांगे | १ | |
(कबीर) | कविता | कारकून | १२ | |
सँडविच | पाककृती | स्वाती दिनेश | १ | |
आसचं कधी वाटतं जेव्हां | कविता | सनिल पांगे | ३ | |
गझल | कविता | स्नेहदर्शन | ५ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |