शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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आघात | कविता | मिलिंद फणसे | ९ | |
यादी | कविता | मिलिंद फणसे | १० | |
हमाली | कविता | मिलिंद फणसे | ३ | |
अनुस्वार विचार | गद्य साहित्य | महेश | २ | |
काही व्याख्या | गद्य साहित्य | महेश | ||
संकीर्ण विचार | गद्य साहित्य | महेश | ||
सामान्यरूप विचार | गद्य साहित्य | महेश | २ | |
र्हस्व दीर्घ विचार | गद्य साहित्य | महेश | ||
शुद्धलेखन | Book page | प्रशासक | १ | |
लग्नाचा विषय. | चर्चेचा प्रस्ताव | हिरामण | १७ | |
आयुष्य | कविता | संदीप | २ | |
संतांचा उपदेश | चर्चेचा प्रस्ताव | श्रीनि | १३ | |
व्यापारास आले आणि राज्यकर्ते झाले | चर्चेचा प्रस्ताव | परभारतीय | ३ | |
दोन धृवावर दोघे आपण | कविता | परभारतीय | ३ | |
अंगात शर्ट की शर्टात अंग? | चर्चेचा प्रस्ताव | महेश | १५ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |