शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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रानटी कोणी म्हणो | कविता | टवाळ | ९ | |
मोक्ष | कविता | अनिरुद्ध१९६९ | २ | |
तुझी गाणी | कविता | उत्पल | २ | |
आजही... | कविता | अजब | ४ | |
काही मुक्तके | कविता | माफीचा साक्षीदार | ५ | |
गानहिरा | गद्य साहित्य | आनंदघन | १ | |
वणवा | कविता | मुक्तछंदा | ७ | |
चारोळी | कविता | प्राजा | ||
स्वातंत्र्यवीरांचे 'स्वातंत्र्यसमर' | गद्य साहित्य | सर्वसाक्षी | १५ | |
बाबा ते आले ना !--- २ | गद्य साहित्य | कुशाग्र | १ | |
शब्दकोडे | कविता | केवाका | ||
आंघोळ : एक करणे | गद्य साहित्य | गौतम_सोमण | ७ | |
पाटलांची चंची - शंकर पाटलांची स्मरणगाथा | गद्य साहित्य | चौकस | ६ | |
विकृत समाजनेते | गद्य साहित्य | केवाका | ११ | |
ओल | कविता | पुलस्ति | ९ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |