शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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आई तुला प्रणाम | कविता | नरेंद्र गोळे | १८ | |
चांदणं | कविता | जयश्री अंबासकर | १२ | |
मनोगतचे (ब्रीद)वाक्य.. | चर्चेचा प्रस्ताव | भाग्यश्री | ७ | |
प्रित. | कविता | भिकारी | २ | |
वाचावे ते नवलच - ७ - दोन कठिण प्रश्न | गद्य साहित्य | अकलेचे कान्दे | ||
मूढ गूढ | कविता | उपटसुंभ | २ | |
वेदकालीन देव-देवता | गद्य साहित्य | विरभि | १६ | |
कविता पूर्ण करा | कविता | चरागप | ५ | |
फ्रेंडशिपडे स्पेशल | कविता | उंटावरचाशहाणा | १ | |
मायबाप हो ! | कविता | शरदखोलगडे | ||
कृतार्थ... | गद्य साहित्य | सन्जोप राव | ३४ | |
अवडंबर | कविता | मिलिंद फणसे | ८ | |
रजा | कविता | ॐ | ४ | |
संपूर्ण 'वन्दे मातरम्' | कविता | भोमेकाका | १७ | |
झोऽऽऽऽप | गद्य साहित्य | सर्वसाक्षी | २८ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |