शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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(सत्र)(असेही!) | कविता | चक्रपाणि | १७ | |
अगं अगं राखी.... | गद्य साहित्य | प्रथम१२६ | १ | |
पाऊस | कविता | अजय१०३ | ९ | |
आफ्रिकन माणसाची प्रेयसी | कविता | तुषारजोशी | २८ | |
(सत्र) | कविता | कारकून | ११ | |
सत्र | कविता | वैभव जोशी | २० | |
हलके | कविता | अभिजित पापळकर | १२ | |
काही तरी. | कविता | प्रशिक | ६ | |
किस्से दैनिकातले! भाग - 2 | गद्य साहित्य | पंकज जोशी | ५ | |
बायकोशी हातघाई चालली | कविता | टीकाराम | १२ | |
संधी- २ | गद्य साहित्य | कागदी वाघ | ५ | |
मुंबई क्राईम डिपार्टमेंट | चर्चेचा प्रस्ताव | आशुतोश | ||
आधार हवाय | कविता | तुषारजोशी | ७ | |
संधी - भाग १ | गद्य साहित्य | कागदी वाघ | २ | |
अजुन एक कवच... | चर्चेचा प्रस्ताव | राहुल१ | १२ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |