शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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रसायन-२ | कविता | केशवसुमार | २ | |
मॅच्युरिटी...समज येणे..म्हणजे काय? | गद्य साहित्य | शुद्ध बैलोबा सुहृद | ४ | |
मी पाहिलंय... | कविता | प्राजु | ५ | |
दह्यातली कारली | पाककृती | सौरभी | १ | |
मुलाहिजा | कविता | चित्त | ६ | |
प्रेम आणि विवाह | गद्य साहित्य | निनाद२९ | २३ | |
केतकरवहिनी - एक वेगळे आत्मचरित्र | गद्य साहित्य | चौकस | १५ | |
निथळतो! | कविता | चैतन्य साळवी | ||
झेंडा | कविता | visunaanaa | १ | |
आजही | कविता | खोडसाळ | ३ | |
फ़क्त्त तिच्यासाठी....... | कविता | गावगुंड | ||
कुटुंब | कविता | केवाका | १ | |
भगवद्गीता अध्याय २,श्लोक २२. | गद्य साहित्य | ग़ुरुजी | ११ | |
बुडापेष्टमध्ये श्रावणी | गद्य साहित्य | ऐहिक | ७ | |
मराठी का डेंजर आहे? | गद्य साहित्य | शुद्ध बैलोबा सुहृद |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |