शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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खवीस | कविता | आनंदी | २ | |
वेळ झाली | कविता | सुवर्णमयी | ८ | |
मसालेदार भात | पाककृती | वरदा | ६ | |
कर्तव्य आणि भावना | कविता | श्रीश | ||
भगवद्गीता अर्थ | गद्य साहित्य | ग़ुरुजी | १ | |
तुला सांगतो...... | कविता | केशवसुमार | २ | |
आई मला नको ग अभ्यास | कविता | संजीवनी | १ | |
मनाला हवाहवासा | कविता | सनिल पांगे | २ | |
शब्दांचा भार | कविता | निकीता | २ | |
तुला सांगतो भगवंता... | कविता | प्रसाद | ११ | |
घर | कविता | सनिल पांगे | ||
सांभाळ तू -२ | कविता | केशवसुमार | ||
कांदा उत्तप्पा | पाककृती | रोहिणी | ४ | |
सांभाळ तू! | कविता | पुलस्ति | ८ | |
सामर्थ्यशीला.....!! | कविता | प्राजु | २ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |