शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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धुसर ….. | कविता | साकार | ||
नायगारा | कविता | पुलस्ति | ३ | |
हेवा | कविता | सनिल पांगे | ३ | |
विश्वास | कविता | सनिल पांगे | ३ | |
तू येणार ..... | कविता | निलेश२९०१ | २ | |
वा हवा | कविता | केशवसुमार | २ | |
ज्योत नसताना कोणी पेटणार नाही | कविता | सनिल पांगे | ||
शर्यत | कविता | सनिल पांगे | ||
गारवा | कविता | जयश्री अंबासकर | ६ | |
क्रमप्राप्त -२ | कविता | केशवसुमार | २ | |
एक मासा पोहोतो | कविता | मनिष१२ | ||
मनाची तयारी | कविता | सनिल पांगे | ४ | |
शेंगदाण्याची खमंग चटणी | पाककृती | प्राजु | २ | |
आठवतो तो समुद्र किनारा | कविता | सनिल पांगे | २ | |
सांगतो मी तुम्हा ती कशी भेटली | कविता | केशवसुमार |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |